(उपेक्षित क्षेत्र में शिक्षा एवं संस्कृति संवर्द्धन हेतु)

अपने देश में पाँच करोड़ वनवासियों की जनसंख्या अधिकांशतः गिरिकन्दराओं एवं जंगलों में छोटे-छोटे ग्राम-समूहों में निवास करती है। इनमें से लगभग 15 लाख जनसंख्या नौकरी या मजदूरी करने के लिए नगरों में पलायन कर गई है। सरकारी भाषा में वनवासियों को अनुसूचित जनजाति (शेड्यूल ट्राइब्स) कहा जाता है। अंग्रेजों ने इन्हें हिन्दू समाज से अलग करने की अपनी कुटिल नीति के कारण आदिवासी (ट्राइब्स) का नाम दिया जो आज भी प्रचलित है। हम लोग इन्हें हिन्दू समाज का अभिन्न अंग मानते हैं तथा ‘‘वनवासी’’ शब्द से सम्बोधित करते हैं। ऐसे क्षेत्रों में संस्थान के कार्य के विस्तार हेतु ‘‘उपेक्षित जन शिक्षा निधि’’ की स्थापना की गई है।

उपेक्षित क्षेत्र में शिक्षा एवं संस्कृति संवर्द्धन हेतु अनुदान :-

संवेदनशील क्षेत्रों में, वनवासी गिरिवासी प्रदेशों में तथा उपेक्षित वर्ग की शिक्षा हेतु सम्पूर्ण समाज को ध्यान देना अपेक्षित है। क्योंकि यह सभी ऐसे क्षेत्र अथवा वर्ग हैं जहाँ विधर्मी एवं अराष्ट्रीय तत्व राष्ट्र विरोधी गतिविधियाँ बढ़ाने में बहुत सक्रिय होते हैं। उन क्षेत्रों में शिक्षा का अभाव होने के कारण ये अराष्ट्रीय तत्व धर्मान्तरण की गतिविधियाँ शिक्षा एवं चिकित्सा की आड़ में चलाते हैं। सीमा के साथ लगे क्षेत्रों में ये आवांछित गतिविधियाँ और भी भयानक रूप ले लेती हैं।

अतः विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान अपने संसाधनों को इन संवेदनशील एवं उपेक्षित क्षेत्रों में शिक्षा एवं संस्कृति के प्रसार एवं संरक्षण हेतु उपलब्ध करने में विशेष रुचि लेता है। संस्थान ने गत कई वर्षों से इन क्षेत्रों में एकल शिक्षक विद्यालय एवं संस्कार केन्द्रों को चलाने के लिए तथा साक्षरता प्रसार की दृष्टि से विशेष आर्थिक अनुदान/सहायता दी है। संस्थान द्वारा प्रारम्भ से अब तक कुल रुपये 3,35,20,000.00 (रुपये तीन करोड़ पैंतीस लाख बीस हजार) का अनुदान दिया जा चुका है।